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प्रेम का विशाल आयाम  ।

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प्रेम ना केवल  – कहने में है, ना सुनने में , 
प्रेम ना केवल आलिंगन में है,ना शब्दों के माया जाल में, 
प्रेम ना केवल सपनों के संसार में है, ना समाजिक मान्यताओं रीतियों में , 
प्रेम ना तो जन्म-मृत्यु तक सीमित है ।  
प्रेम तो  तन  और मन से परे आत्मा में है । 
प्रेम ही आत्म तत्व है ।
प्रेम असीम से अनन्त तक है, प्रेम ईश्वर का रूप है,प्रेम ही शिव है । 
प्रेम अटूट, अटल सत्य  है ।
 प्रेम ही दया,  करुणा ,शांती , क्षमा का स्रोत है । प्रेम ही सृष्टि है। 
प्रेम ईश्वर का एक अनुपम अप्रतिम एहसास है ।
प्रेम ही आनन्द है।  
प्रेम सरलता , तरलता और विशालता, अभेदता में है । प्रेम क्रन्दन में , समर्पण में भी है। प्रेम स्वाधीनता है।
प्रेम समानता,एकता, निस्वार्थता, निरपेक्षता है , प्रेम शुद्ध है ।
 प्रेम कर्म निष्ठ,धर्म निष्ठ कर्तव्य परायणता का प्रेरक  है। प्रेम सहिष्णुता , सयंम है। प्रेम प्रोत्साहन में है । 
प्रेम भक्ति में है ।
 प्रेम सींचता है, प्रेम उत्कर्ष है, उल्लास है ।
 प्रेम में जल समान शीतलता और अरुणिमा की लालिमा का तेज भी है । 
प्रेम ही जीवन रेखा है, इसिलिए प्रेम अमृत है, सुंदर है