कुछ लम्हें…!

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उन चन्द लम्हों में,

तम्हें अपना सा बनालिया मैंने,

खोया था जो मेरे जिगर का टुकड़ा,

उसको फिर से पा लिया मैंने।

लम्हें कुछ ही थे, मुलाकाते भी छोटी  सी थी,

पर हर लम्हें को प्यार के,

अनगिनत एहसासों से भर दिया मैंने।

तुमहारी मेरी बातें भी हल्की सी थी,

फिर भी अपनी नज़र मिला के,

दिल से सब कुछ बता दिया मैंने ।

बारिश की कुछ बूंदों को,

इश्क़ का ज़लज़ला बना दिया मैंने,

बस कुछ ही लमहों में,

उम्र भर का प्यार जता दिया मैंने।  

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